स्मृतियाँ कुछ भाप सी
बर्फीली चट्टान सी कुछ
साल में बस एक बार आने वाले मौसमों सी कुछ
स्मृतियाँ जो चूल्हे की राख सी ठंडी हो चलीं
स्मृतियाँ जो देह में गोदने सी गुद गईं
स्मृतियाँ फर्श पर बिखरी पानी की बूँदें नहीं
जो मिटा दी जाएँ पोछा फेरकर
वे कंकड़ हों तो भी
समा जाती हैं मिट्टी में
चलो यही सही
मैं पी जाती हूँ पानी सा उन्हें
रक्त में मिला लेती हूँ
जीवन में उतार लेती हूँ एक लय की तरह
आखिर ये भी क्या फलसफा हुआ
कि कड़वा कड़वा थू...